रविवार, 30 सितंबर 2018

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

The Magic Of Astro Life

🕉️ 1 अक्टूबर 2018 दिन - सोमवार को नहाखाए एवं मध्यरात्रि के बाद और 2:41मिनट रात्रि से पहले ओठगन तथा   दिनांक 2 अक्टूबर 2018 दिन - मंगलवार को जीवित्पुत्रिका व्रत एवं दिनांक 3 अक्टूबर 2018 दिन -बुधवार को सूर्योदय के उपरान्त पारण किया जाएगा ! धार्मिक रूप में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व रहा है ! जीवित्पुत्रिका व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास और पूजा अर्चना के साथ संपन्न होता है ! आश्विन माह की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी को सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की आयु , आरोग्य तथा उनके कल्याण हेतु इस महत्वपूर्ण व्रत को किया जाता है ! जीवित्पुत्रिका व्रत को जीतिया या जीउजिया , जिमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है ! बिहार तथा उत्तर प्रदेश में इस व्रत की बहुत मान्यता है ! जीवित्पुत्रिका व्रत करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है तथा संतान का सर्वमंगल कल्याण होता है ! इस पवित्र व्रत के अवसर पर कई लोककथाएँ प्रचलित हैं ! इसमें से एक कथा चील और सियारिन की है ! जो इस प्रकार है - कि प्राचीन समय में एक जंगल में चील और सियारिन रहा करती थी और दोनों ही एक दूसरे की मित्र भी थी ! दोनो ने एक बार कुछ स्त्रियों को यह व्रत करते हुए देखा ! दोनो ने एक साथ इस व्रत को किया किंतु सियारिन इस व्रत में भूख के कारण व्याकुल हो उठी तथा भूख सही न गई ! इस कारण सियारिन ने चुपके से खाना ग्रहण कर लिया किंतु चील ने इस व्रत को पूरी निष्ठा के साथ किया और परिणाम यह हुआ कि सियारिन के जितने भी बच्चे हुए वह कुछ ही दिन में मर जाते तथा व्रत निभानेवाली चील्ह के सभी बच्चों को दीर्घ जीवन प्राप्त हुआ !

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          🔯 ( 2 ) दूसरी कथा -जीवित्पुत्रिका व्रत के साथ जीमूतवाहन की कथा भी जुडी है ! इस कथा अनुसार गन्धर्वो के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था वह बहुत दयालु एवं धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे ! जब इन्हें राजसिंहासन पर बैठाया गया तो इनका मन राज -पाट में नहीं लग पाया ! अत: राज्य का भार अपने भाइयों पर छोडकर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले जाते हैं ! इस प्रकार जीमूतवाहन अपना समय व्यतीत करने लगते हैं ! लेकिन एक दिन वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन को एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखाई पड़ती है ! वह वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछते हैं तो वह वृद्धा उनसे कहती है कि मैं नागवंश की स्त्री हूं तथा मेरा एक ही पुत्र है ! परंतु नागों ने पक्षिराज गरुड के समक्ष उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा ले रखी है ! इस कारण वह रोज किसी न किसी नाग को उन्हें सौंप देते हैं और आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है अब मैं क्या करूं कृपा मेरी मदद करें ! उस स्त्री की व्यथा सुनकर जीमूतवाहन उसे आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि “ आप चिंता न करें मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा ! आज उसके बदले मैं स्वयं को प्रस्तुत करूंगा ! अत: जीमूतवाहन , गरुड को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य - शिला पर लेट जाते हैं ! नियत समय पर गरुड राज आते हैं तथा लाल कपडे में ढंके जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबोच कर पहाड़ के शिखर पर ले जाते हैं ! चंगुल में फंसे व्यक्ति की कोई भी प्रतिक्रिया न पाकर गरुड राज आश्चर्य में पड़ जाते हैं और जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछते हैं इस पर जीमूतवाहन उन्हें सारा किस्सा कह सुनाते हैं ! जीमूतवाहन की बहादुरी और परोपकार कि भावना से प्रभावित हो प्रसन्न होकर गरुड़ जी उन्हें जीवन - दान देते हैं तथा नागों की बलि न लेने का वरदान भी देते हैं ! इस प्रकार जीमूतवाहन के साहस से नाग - जाति की रक्षा होती है तभी से पुत्र की सुरक्षा एवं दीर्घायु हेतु इस पूजा एवं व्रत को किया जाता है !

Astrologer Prabhat Kumar Prince 
Mo:-9304878779

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