रविवार, 17 सितंबर 2023

चौठचन्द्र {चौरचन} पूजा विधि मन्त्र और कथा सहित

चौठचन्द्र (चौरचन) पूजा विधि मन्त्र और कथा सहित 

जय चौठचन्द्र भगवान🙏🏼🙏🏼
============= भादव शुक्ल चतुर्थी पहिल साँझ व्रती स्नान कऽ आसन पर बैसि पूजाक सब सामग्री अरिपन अनुसार दही डाली मररक खीर-पूरी दीप संग कलश स्थापन कय कुशक वा सोना चांदी पवित्री पहिर तिल कुशा जल लय इ मंत्र पढि सामग्री संग जल छिटी स्वयं पवित्र होई छथि- नमः अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सवाह्याभ्यन्तर: सुचि।। नमः पुण्डरीकाक्ष: पुनातु। नमः पुण्डरीकाक्ष: पुनातु। नमः पुण्डरीकाक्ष: पुनातु। कहि क अपना ऊपर और पूजन सामग्री पर जल स सिक्त करू।। 
गणपत्यादि पंचदेवता पूजन- अक्षत लय-नमो गणपत्यादि पंचदेवता: इहागच्छत इह तिष्ठत। कहि पात पर एककात राखि दी। 
 अर्घा में जल लय- एतानि पाद्यादीनि एषोर्घ: नमो गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:। 
 फूल में चानन लगाक- इदमनुलेपनं गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नमः ।
 अक्षत लय- इदमक्षतं गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:।
 फूल लय-इदं पूष्प गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:। 
 बेलपात लय-इदं विल्वपत्रं गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:। 
 दूबि लय-इदं दुर्वादलम् गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:। 
 जल लय- एतानि गंधपुष्पधूपदीप ताम्बुलयथाभाग नानाविध नैवेद्यानि गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:। नैवेद्य पर  उत्सर्ग करी।
जल लय-इदमाचमनीयं नमो गणपत्यादि पंचदेवता भ्यो नम:। 
 पुष्पाञ्जलि- एष पुष्पाञ्जलि गणपत्यादि पञ्चदेवता भ्यो नमः।
विधवा स्त्री तील लय- नमो भगवत् भगवान श्रीविष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ। पूजा के बगल में पात पर राखू। जल लय-एतानि पाद्यादीनि एषोर्घ: नमोभगवते श्रीविष्णवे नम:।पूजा पात पर चढा दी। अहिना फूल तुलसीपात आदि स पंचोपचार पूजा करी।
सुहागिन स्त्री गौरी पूजा करथि- अक्षत लय-नमो गौरि इहागच्छ इह तिष्ठ।
 जल लय-एतानि पाद्यादीनि नमो गौर्ये नम:। 
 चानन लय-इदमनुलेपनं नमो गौर्ये नम:। सिंदुर लय-इदं सिन्दूराभरणं नमो गौर्ये नम:।
 अक्षत लय-इदमक्षतं नमो गौर्ये नम:।
 फूल लय-इदं पुष्पं नमो गौर्ये नम:।
 दुबि लय- इदं दुर्वादलम नमो गौर्ये नम:।
 बेलपात लय- इदं विल्वपत्रं नमो गौर्ये नम:। 
 जल लय-एतानि गंधपुष्पधूपदीपताम्बुल यथाभाग नानाविध नैवेद्यानि नमो गौर्ये नम:।नैवेद्य पर उत्सर्ग करी। 
 जल लय-इदमाचमनीयं नमो गौर्ये नम:।

 तिल कुशा जल लय संकल्प मंत्र- नमोऽस्यां रात्रौ भाद्रे मासि शुक्ल पक्षे चतुर्थ्यां तिथौ शुभवासरे (दिन क नाम लिय)अमुक गोत्राया:(अप्पन गोत्र लिय) ममाऽमुकीदेव्या:(अप्पन नाम लिय) ।।सकल कल्याणोत्पत्तिपूर्वक धनधान्यादि समृद्धि सकल मनोरथ सिद्धयर्थं यथाशक्ति गंधपुष्प धूपदीप ताम्बूल यज्ञोपवित वस्त्रनानाविध-नैवेद्यादिभि: रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्रपूजनं तत्कथा श्रवण संकल्प अहं करिष्ये।।
चौठचन्द्र पूजा- 
अक्षत लिय-नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्र इहागच्छ इह तिष्ठ।पात पर राखू।
 उजर फूल लिय- श्वेतांबरं स्वच्छतनुं सुधांशु चतुर्भुजं हेमविभूषणाढ्यम्। वरं सुधा दिव्यकमण्डलुञ्च करैरभीतिञ्च दधानभीडे।। एष पपुष्पाञ्जलि नमो रोहिनिसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चन्द्राय नमः। 
 जलक अर्घ्यदान-सोमाय सोमेश्वराय सोमपतये सोमसम्भवाय गोविन्दाय नमो नम:। एतानि पाद्यादीनि एषोऽर्घ्य: नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम:। 
 चानन लय-मलयाद्रिसमुद्भूतं श्रीखंडं त्रिदशाप्रियम्। सर्वपापहरं सौख्यं चंदनं मे प्रगृह्यताम्। इदमनुलेपनं नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम:।
 अक्षत लय-इदमक्षतं नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम:।
 उजर फूल लय - त्रैलोक्यमोदकं पुष्पं शुक्ल पुष्पं मनोहरम्।दिव्यौषधि क्षपानाथ गृह्यतां च प्रसीद मे। एतानि पुष्पाणि नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :।
 बेलपात लय-इदं विल्वपत्रं नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नमः। 
 दुर्वा लिय-इदं दुर्वादलम नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नमः।
 यज्ञोपवित लय- सुसंस्कृतं चतुर्वेदैर्द्विजानां भूषणं वरम्।यज्ञोपवितंदेवेश कृपया मे प्रगृह्यताम्। इमे यज्ञोपविते वृहस्पतिदैवते नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :।
 वस्त्र लय- तन्तुसन्तानसम्भूतं कलाकोशलकल्पितम्। सर्वाङ्गभूषणश्रेष्ठं वसनं परिधीयताम्।।इदं वस्त्रं वृहस्पतिदैवतं नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :।
 नैवेद्य- नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्ति मे ह्यचलां कुरू। ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परांङ्गतिम।। एतानि गंधपुष्प धूपदीपसदधिपक्वान्नादि नानाविध नैवेद्यानि नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :।
 पुंगीफल- पूंगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्। कर्पूरादिसमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।एतानि ताम्बूलानि नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :।
 धूप- गन्धभारवहं दिव्यं नानावस्तुसमनवितम्। सुरासुरनरानन्दं धूपं देव गृहाण मे।। एष धूप: नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :। 
 कलशदीपदानम्- मार्तण्डमण्डलाखण्डचन्द्रबिम्बाग्निदीप्तिमान्। विधात्रा देवदीपोऽयं निर्मितस्तेऽस्तु भक्तित:।। एष कलशदीप: नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :। 
 शंख में फल फूल दूध लय-
अत्रिनेत्रसमुद्भूत क्षीरोदार्णवसंभव।
गृहामार्घ्य मया दत्तं रोहिण्या सहितप्रभो । इदं दुग्धार्घ्यं नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्राय नम :। 
डाली लय चंद्र दर्शन मंत्र- 
सिंह प्रसेन मवधीत्सिंहो जाम्बवताहत ।
 सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तक ।।
प्रणाम मंत्र-
नम: शुभ्रांशवे तुभ्यं द्विजराजाय ते नम । 
रोहिणीपतये तुभ्यं लक्ष्मीभ्रात्रे नमोऽस्तु ते ।।
दही छाँछी लय प्रणाम मंत्र -
दिव्यशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम् ।
 नमामि शशिनं भक्त्या शंभोर्मुकुट भूषणम् ।।
प्रार्थना मंत्र -
 मृगाङ्क रोहिणीनाथ शम्भो : शिरसि भूषण । 
व्रतं संपूर्णतां यातु सौभाग्यं च प्रयच्छ मे ।। 

 रुपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवन् देहि मे। 
पुत्रान्देहि धनन्देहि सर्वान् कामान् प्रदेहि मे।। 
 फेर प्रणाम क हाथ म फूल ल क कथा सुनु जे ई प्रकार ऐछ

( चौरचन कथा )

 चौरचन के सम्बन्ध में स्कन्दपुराण मे चन्द्रोपाख्यान शीर्षक सँ वर्णित कथा - नन्दिकेश्‍वर सनत्कुमार सँ कहैत छथिन्ह- "हे सनत कुमार ! यदि अहाँ अपन शुभक कामना करैत छी तऽ एकाग्रचित सँ चन्द्रोपाख्यान सुनू । पुरुष होथि वा नारी ओ भाद्र शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र पूजा करथि । ताहि सँ हुनका मिथ्या कलंक तथा सब प्रकार केँ विघ्नक नाश हेतैन्ह।" सनत्कुमार पुछलिन्ह- "हे ऋषिवर ! ई व्रत कोना पृथ्वी पर आएल से कहु।" त नन्दकेश्‍वर बजलाह-"ई व्रत सर्व प्रथम जगत केर नाथ श्री कृष्ण पृथ्वी पर कैलथिन्ह। सन्तकुमार केँ आश्‍चर्य भेलैन्ह। षड्गुण ऐश्‍वर्य सं सम्पन्‍न सोलहो कला सँ पूर, सृष्टिक कर्त्ता-धर्त्ता, ओ केना लोकनिन्दाक पात्र भेलाह। नन्दीकेश्‍वर कहैत छथिन्ह – "हे सनत्कुमार! बलराम आओर कृष्ण, वसुदेव केर पुत्र भऽ पृथ्वी पर वास केलथिन्ह। ओ जरासन्धक भय सँ द्वारिका गेलथिन्ह। ओतय विश्‍वकर्मा द्वारा अपन पत्नीसबहक लेल १६ हजार तथा यादव सब केँ लेल ५६ करोड़ घर केँ निर्माण कय वास केलथिन्ह। ओहि द्वारिका मे उग्रनाम केर यादव केँ दूटा बेटा छलैन्ह, सतजित आओर प्रसेन। सतजित समुद्र तट पर जा अनन्य भक्‍तिसँ सूर्यक घोर तपस्या कय हुनका प्रसन्‍न केलाह। प्रसन्‍न सूर्य प्रगट भऽ वरदान माँगू कहलखिन। सतजित हुनका सँ स्यमन्तक मणिक याचना कयलन्हि। सूर्य मणि दैत कहलथिन्ह, "हे सतजित! एकरा पवित्रता पूर्वक धारण करब, अन्यथा अनिष्ट होएत।" सतजित ओ मणि लऽ नगर मे प्रवेश करैत विचारय लगलाह ई मणि देखि कृष्ण मांगि नहि लेथि। ओ ई मणि अपन भाइ प्रसेन केँ देलखिन। एकदिन प्रसेन श्री कृष्ण केर संग शिकार खेलय लेल जंगल गेलाह। जंगल मे प्रसेन पछुआ गेलाह। सिंह हुनका मारि मणि लऽ क चलल तऽ ओकरा जाम्बवान्‌ भालू मारि देलखिन । जाम्बवान्‌ ओ मणि लऽ अपना निवास स्थान मे प्रवेश कऽ खेलऽ लेल अपना पुत्र केऽ देलखिन । एम्हर कृष्ण अपना संगी साथीक संग द्वारिका ऐलैथ। ओहि समूहमे लोक सब प्रसेन केँ नहि देखि बाजय लगलाह जे ई पापी कृष्ण मणिक लोभ सँ प्रसेन केँ मारि देलाह। एहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण व्यथित भऽ चुप्पहि, प्रसेनक खोज लेल जंगल गेलाह। ओतऽ देखलाह प्रसेन मरल छथि। अाराे आगू गेलाह तऽ देखलाह एकटा सिंह मरल अछि। किछ देर अाराे आगू गेलाह त उत्तर दिशामे एकटा गुफा देखलाह। ओहि गुफा मे प्रवेश केलाह । ओ गुफा अन्धकारमय छलैक। ओकर दूरी १०० योजन यानि ४०० मील छल। कृष्ण अपना तेज सँ अन्धकार के नाश कय जखन अंतिम स्थान पर पहुँचलाह तऽ देखैत छथि कि खूब मजबूत, खूब निक सुन्दर भवन अछि। ओहि मे खूब सुन्दर पालना पर एकटा बच्चा के दाय झुला रहल छैक। बच्चा क आँखिक सामने ओ मणि लटकल छैक आ दाय गबैत छैक – "सिंहः प्रसेनं अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदी तव हि एषः स्यमन्तकः॥" अर्थात्‌ "सिंह प्रसेन केँ मारलाह, सिंह जाम्बवान्‌ सँ मारल गेल, औ बौआ! जूनि कानू! अहींक ई स्यमन्तक मणि अछि।" तखनैहि एक अपूर्व सुन्दरी विधाताक अनुपम सृष्टि युवती ओतय अयलीह। ओ कृष्ण केँ देखि काम-ज्वर सँ व्याकुल भऽ गेलीह। ओ बजलीह, "हे कमलनेत्र! ई मणि अहाँ लियऽ आओर तुरत भागि जाउ। जा धरि हमर पिता जाम्बवान्‌ सुतल छथि।" श्री कृष्ण प्रसन्‍न भऽ शंख बजा देलथिन्ह। जाम्बवान्‌ उइठ गेलाह आ श्री कृष्ण सँ युद्ध करय लगलाह। हुनका दुनु केँ भयंकर बाहुयुद्ध २१ दिन धरि चलैत रहलन्हि। एम्हर द्वारिकावासी सात दिन धरि कृष्णक प्रतीक्षा कय हुनकर प्रेत क्रिया सेहो कय देलखिन। २२ म दिन जाम्बवान्‌ ई निश्‍चित क लेलैथ जे कि ई मानव नहि भऽ सकैत छथि। ई अवश्य परमेश्‍वर छथि । ओ युद्ध छोड़ि हुनकर प्रार्थना केलथिन्ह अौर अपन कन्या जाम्बवती केँ श्री कृष्ण केर अर्पण कय देलथिन्ह। भगवान् श्री कृष्ण मणि लैत जाम्बवतीक संग सभा भवन मे आइब, जनताक समक्ष सतजीत केँ ओ स्यमन्तक मणि सादर समर्पित कय देथिन्ह। सतजीत प्रसन्‍न भऽ अपन पुत्री सत्यभामा कृष्ण केर सेवा लेल अर्पण कय देलखिन । किछुए दिन मे दुरात्मा शतधन्बा नामक एकटा यादव, सतजित केँ मारि ओ मणि लय लेलक। सत्यभामा सँ ई समाचार सूनि श्री कृष्ण, बलराम केँ कहलथिन्ह, "हे भ्राताश्री! ई मणि हमरे योग्य अछि। एकरा शतधन्बा लऽ लेलक। ओकरा पकड़ू।" शतधन्बा ई सूनि ओ मणि, अक्रूर केँ दय देलखिन आओर रथ पर चढ़ि दक्षिण दिशा मे भागि गेलाह। कृष्ण-बलराम १०० योजन धरि हुनकर पांछाँ केलाह। वाद मे शतधन्बासंग मे मणि नहि देखि बलराम कृष्ण केँ फटकारऽ लगलाह, “हे कपटी कृष्ण ! अहाँ लोभी छी ।” कृष्ण केँ लाखों शपथ खेला पर बलराम शान्त नहि भेलाह तथा विदर्भ देश चलि गेलाह। कृष्ण घूरिऽ‌‍ कय जहन द्वारिका एलाह, तँ लोक सभ फेर कलंक देबऽ लगलैन्ह। जे ई कृष्ण मणिक लोभ सँ बलराम एहन शुद्ध भाय केँ फेर छलपूर्वक द्वारिका सँ बाहर कय देलाह। अहि मिथ्या कलंक सँ कृष्ण संतप्त रहय लगलाह। अहि बीच नारद (ओहि समयक पत्रकार) त्रिभुवनलोक मे घुमैत कृष्ण सँ मिलक लेल आयल छलाह। चिन्तातुर उदास कृष्ण केँ देखि पुछखिन “हे देवेश! किएक उदास छी?” कृष्ण कहलथिन्ह, ” हे नारद! हम बेरि-बेरि मिथ्यापवाद सँ पीड़ित भऽ रहल छी।” नारद कहलखिन, “हे देवेश! अहाँ निश्‍चिते भादो मासक शुक्ल चतुर्थीक चन्द्र देखने होएब तेँ अपने केँ बेरि-बेरि मिथ्या कलंक लगैत ऐछ। श्री कृष्ण नारद सँ पूछलखिन, “चन्द्र दर्शन सँ किऐक ई दोष लगैत छैक।” नारद जी कहलखिन, “जे अति प्राचीन काल मे चन्द्रमा, गणेश जी सँ अभिशप्त भेलाह, जे अहाँक जे कियाे देखताह हुनको मिथ्या कलंक लगतैन्ह।” कृष्ण पूछलखिन, “हे मुनिवर! गणेश जी किऐक चन्द्रमा केँशाप देलखिन?” नारद जी कहलखिन, “हे यदुनन्दन! एक बेरि ब्रह्मा, विष्णु आओर महेश पत्नीक रुप मे अष्ट सिद्धि आओर नवनिधि केँ गणेश केँ अर्पण कय प्रार्थना केलखिन। गणेश प्रसन्न भऽ हुनका तीनू केँ सृजन, पालन आओर संहार कार्य निर्विघ्न रूप सँ करु ई आशीर्वाद देलखिन। ताहिकाल मे सत्यलोक सँ चन्द्रमा धीरे-धीरे नीचाँ आबि अपन सौन्दर्य मद सँ चूर भऽ गजवदन केँ उपहास केलखिन। तहन गणेश जी क्रुद्ध भऽ हुनका शाप देलखिन,“हे चन्द्र! अहाँ अपन सुन्दरता सँ नितरा रहल छी। आइ सँ जे अहाँ केँ देखताह, हुनका मिथ्या कलंक लगतैन्ह ।” चन्द्रमा कठोर शाप सँ मलीन भऽ जलमे प्रवेश कय गेलाह। देवता लोकनि मे हाहाकार मचि गेल । ओ सब ब्रह्माक पास गेलाह। ब्रह्मा कहलखिन अहाँ सब गणेश जी सँ जा कय विनती करू, वैह एकर उपाय बतेता। सब देवता पूछलखिन जे गणेशक दर्शन कोना होयत। ब्रह्मा बजलाह, “चतुर्थी तिथि केँ गणेश जी के पूजा करु।” सब देवताचन्द्रमा सँ कहलथिन्ह। चन्द्रमा चतुर्थीक गणेश पुजा केलाह। गणेश बालरुप मे प्रकट भऽ दर्शन देलखिन आओर कहलखिन,"चन्द्रमा हम प्रसन्‍न छी, वरदान माँगू ।” चन्द्रमा प्रणाम करैत कहलखिन, “हे सिद्धि विनायक! हम शाप मुक्‍त होइ, पाप मुक्‍त होइ, सभ हमर दर्शन करय।” गणेश जी कहलखिन जे हमर शाप व्यर्थ नहि जायत किन्तु शुक्ल पक्ष मे प्रथम उदित अहाँक दर्शन आओर नमन शुभकर रहत तथा भादोक शुक्ल पक्ष मे चतुर्थीक जे अहाँक दर्शन करताह हुनका लोकलांछणा लगतैन्ह । किन्तु यदि ओ “सिंहः प्रसेनं अवधीत्..”(जे की दर्शन मन्त्र ऊपर म देल ऐछ) इ मन्त्र केँ पढ़ैत दर्शन करताह तथा हमर पूजा करताह हुनका ओ दोष नहि लगतैन्ह। एवम् प्रकारेन्, श्री कृष्ण सेहो नारद सँ प्रेरित भऽ एहिव्रत केर अनुष्ठान कयलाह । तहन ओ लोक कलंक सँ मुक्‍त भेलाह । एहि चौठ तिथि आओर चौठ चन्द्र केँ जनमानस पर एहन प्रभाव पड़ल जे आइयो लोक चौठ तिथि केँ किछु नहि करऽ चाहैत छथि । कवि समाजो अपना काव्य मे चौठक चन्द्रमाक नीक रुप मे वर्णन नहि करैत छथि । कवि शिरोमणि तुलसी दासक सुन्दर काण्ड मे मन्दोदरी-रावण संवाद मे मन्दोदरीक मुख सँ अपन उदगार व्यक्‍त करैत कहे छथि,“तजऊ चौथि के चन्द कि नाई” अर्थात "हे रावण। अहाँ सीता केँ चौठक चन्द्र जकाँ त्याग कऽ दियहु। नहि तऽ लोक निंदा करत अहाँक नाश कय देतीह।" एतय ध्यान देबाक बात ई अछि जे जाहि चन्द्र केँ हम सब आकाश मे घटैत बढ़ैत देखैत छी ओ पुरुष रुप मे एक उत्तम दर्शन भाव लेने अछि।।
 प्रेम स कहियौ चौठचन्द्र भगवान की जय🙏🏼🙏🏼 
गणेश भगवान की जय🙏🏼🙏🏼 कहि के फूल अर्पित करू तदुपरांत जहिना पूजा केलहुं ओहि क्रम में बेराबेरी विसर्जन करी ।
विसर्जन मंत्र- नमो गणपत्यादि पंचदेवता: पूजिता: स्थ क्षमस्वं स्वस्थानं गच्छत।
विधवा- नमो विष्णो पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व।
सुहागिन- नमो गौरि पूजितासि प्रसीद क्षमस्व।
नमो रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्र पूजितोऽसि प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ। 
 दक्षिणा द्रव्य जल से सिक्त कय तील जल लय मंत्र- नमोऽस्यां रात्रौ कृतेतद्रोहिणीसहित भाद्र शुक्ल चतुर्थी चंद्र पूजनकर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्द्रव्य मूल्यकहिरण्यमग्निदैवतंयथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे। कुश तील जल द्रव्य पर अर्पण कय। दक्षिणा प्रतिपन्न करी ओ स्वाच्छन्न देता। 
ॐ स्वस्ती'ति।।
 क्षमायाचना सपरिवार कलजोरी- हे चतुर्थी चंद्र हम त आहां के बच्चा छी यथासाध्य नैवेद्य फुल पान लय आहांक पुजा कयलो कोनो त्रुटि लेल क्षमा करब। 
तदुपरांत मड़ड उत्सर्ग कय भांगि आ प्रसाद वितरण करी।
पंडित भेट जाईथ त सर्वोत्तम नै त पिता/पती/पुत्र/भाई/कुटंब/संवंधी से उपरोक्त विधि से पुजन करी ।
चौठचन्द्र भगवान की जय🙏🙏

सम्पादक- आचार्य प्रभात झा {सिद्धान्त ज्योतिषाचार्य}

              सम्पर्क नम्बर- +91-9155657892


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चौठचन्द्र {चौरचन} पूजा विधि मन्त्र और कथा सहित

चौठचन्द्र (चौरचन) पूजा विधि मन्त्र और कथा सहित   जय चौठचन्द्र भगवान🙏🏼🙏🏼 ============= भादव शुक्ल चतुर्थी पहिल साँझ व्रती स्नान कऽ ...