The Magic of Astro Life
विवाह हो या जन्म दिन हर मौके पर संस्कृत में दीजिए शुभकामनाएँ
हमारे कई सुधी पाठक हमसे लगातार आग्रह करते रहे हैं कि विविध अवसरों पर दी जाने वाली शुभकामना संस्कृत श्लोकों में हिन्दी अर्थ के साथ उपलब्ध कराई जाए। हमारे सुधी पाठकों के सहयोग से हमने संस्कृत के कुछ श्लोक हिन्दी अर्थ के साथ पाठकों की रुचि के अनुरूप उपलब्ध कराने का प्रयास किया है। यदि आप भी समें कोई श्लोक जोड़ना चाहें तो आपका स्वागत है।
विवाह के अवसर पर
राजेश-ऋचा विवाह अनुबन्धम्। शुभं भवतु ॠषि कृत प्राचीन प्रबन्धम्।।
प्राचीन भारतीय ॠषियों द्वारा अनुप्रणीत सामाजिक प्रबन्धन के अनुसार विशेष और स्नेहा का विवाह शुभ और कल्याण प्रद हो।
(इसमें राजेश-ऋचा की जगह नवविवाहित जोड़े का नाम दिया जा सकता है)
(इसमें राजेश-ऋचा की जगह नवविवाहित जोड़े का नाम दिया जा सकता है)
खलु भवेत् नव युगल जीवने सत्यं ज्ञान प्रकाशः।
वर्धयेन्नित्यं परस्परं प्रेम त्याग विश्वासः।
काम क्रोध लोभ संमोहाः प्रमुच्येत् भव बन्धम्।।
वर्धयेन्नित्यं परस्परं प्रेम त्याग विश्वासः।
काम क्रोध लोभ संमोहाः प्रमुच्येत् भव बन्धम्।।
हम परमपिता ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि नव दम्पति का जीवन सदैव सत्य और ज्ञान के प्रकाश से परिपूर्ण हो और दोनों में दिन-प्रतिदिन परस्पर प्रेम त्याग और विश्वास बढ़ता रहे। आप काम क्रोध लोभ मोह आदि बन्धनों से मुक्त होकर अपने जीवन के रम लक्ष्य को प्राप्त करें।
इहेमाविन्द्र सं नुद चक्रवाकेव दम्पती ।
प्रजयौनौ स्वस्तकौ विश्मायुर्व्यऽश्नुताम् ॥
प्रजयौनौ स्वस्तकौ विश्मायुर्व्यऽश्नुताम् ॥
हमारी शुभकामना है कि देवों के देव इन्द्र नव-दंपत्ति को इसी तरह एक करें जैसे चकवा पक्षी का जोड़ा रहता है; विवाह का ये पवित्र बंधन आपके कुल की वृध्दि और संपन्नता का कारक बने।
विवाह दिनं इदम् भवतु हर्षदम्।
मंगलम तथा वां च क्षेमदम्।।
प्रतिदिनं नवं प्रेम वर्धता।
शत गुण कुलं सदा हि मोदता।।
मंगलम तथा वां च क्षेमदम्।।
प्रतिदिनं नवं प्रेम वर्धता।
शत गुण कुलं सदा हि मोदता।।
लोक सेवया देव पूजनमं।
गृहस्थ जीवन भवतु मोक्षदम्।।
गृहस्थ जीवन भवतु मोक्षदम्।।
विवाह का ये मंगल दिन आप दोनों के लिए प्रसन्नता, प्रगति और सुखी व संपन्न जीवन का पथ प्रशस्त करे।
आप दोनों एक-दूसरे के लिए नवीन प्रेम का सृजन करें।
आप दोनों शतायु हों और अपने परिवार व कुल की उन्नति के कारक बनें।
समाज सेवा और ईश्वर भक्ति की भावना के साथ आप सांसारिकता से सदा मुक्त रहें।
आप दोनों शतायु हों और अपने परिवार व कुल की उन्नति के कारक बनें।
समाज सेवा और ईश्वर भक्ति की भावना के साथ आप सांसारिकता से सदा मुक्त रहें।
ज्यायस्वन्तश्चित्तिनो मा वि यौष्ट संराधयन्तः सधुराश्चरन्तः ।
अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्क्र्णोमि । । अथर्व।३-३०-५
अन्यो अन्यस्मै वल्गु वदन्त एत सध्रीचीनान्वः संमनसस्क्र्णोमि । । अथर्व।३-३०-५
बड़ों की छत्र छाया में रहने वाले एवं उदारमना बनो । कभी भी एक दूसरे से पृथक न हो। समान रूप से उत्तरदायित्व को वहन करते हुए एक दूसरे से मीठी भाषा बोलते हुए एक दूसरे के सुख दुख मे भाग लेने वाले ‘एक मन’ के साथी बनो ।
सध्रीचीनान् व: संमनसस्कृणोम्येक श्नुष्टीन्त्संवनेन सर्वान्।
देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु।। (अथर्व. ३-३०-७)
देवा इवामृतं रक्षमाणा: सामं प्रात: सौमनसौ वो अस्तु।। (अथर्व. ३-३०-७)
तुम परस्पर सेवा भाव से सबके साथ मिलकर पुरूषार्थ करो। उत्तम ज्ञान प्राप्त करो। योग्य नेता की आज्ञा में कार्य करने वाले बनो। दृढ़ संकल्प से कार्य में दत्त चित्त हो तथा जिस प्रकार देव अमृत की रक्षा करते हैं। इसी प्रकार तुम भी सायं प्रात: अपने मन में शुभ संकल्पों की रक्षा करो।
स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥
ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥
ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥
आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें | विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें | ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे| आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे।
कुर्यात् सदा मंगलम्
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दीर्घायुरारोग्यमस्तु
सुयशः भवतु
विजयः भवतु
जन्मदिनशुभेच्छाः
दीर्घायुरारोग्यमस्तु
सुयशः भवतु
विजयः भवतु
जन्मदिनशुभेच्छाः
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्
जय जय जय तव सिद्ध साधनम्
सुख शान्ति समृद्धि चिर जीवनम्
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्
जय जय जय तव सिद्ध साधनम्
सुख शान्ति समृद्धि चिर जीवनम्
शुभ तव जन्म दिवस सर्व मंगलम्
प्रार्थयामहे भव शतायु: ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जय जीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।।
ईश्वर सदैव आपकी रक्षा करे
समाजोपयोगी कार्यों से यश प्राप्त करे
आपका जीवन सबके लिए कल्याणकारी हो
हम सभी आपके लिए यही प्रार्थना करते हैं
समाजोपयोगी कार्यों से यश प्राप्त करे
आपका जीवन सबके लिए कल्याणकारी हो
हम सभी आपके लिए यही प्रार्थना करते हैं
शुभकामना के लिए
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपदः |
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपंज्योति नमोऽस्तु ते||
शत्रु बुद्धि विनाशाय दीपंज्योति नमोऽस्तु ते||
दीपक की जो ज्योति हमारे जीवन में सौभाग्य, स्वास्थ्य, प्रगति का मार्ग प्रशस्त करते हुए अंधकार रुपी नकारात्मक शक्तियों का नाश करती है, उस दीप ज्योति को मैं नमन करता हूँ।
मृत्यु के लिए शोक संवेदना –गीता के श्लोक
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥२७॥
क्योंकि इस मान्यता के अनुसार जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का जन्म निश्चित है। इससे भी इस बिना उपाय वाले विषय में तू शोक करने योग्य नहीं है। ॥२७॥
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत। अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥२८॥
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?। ॥२८॥
हे अर्जुन! सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले अप्रकट थे और मरने के बाद भी अप्रकट हो जाने वाले हैं, केवल बीच में ही प्रकट हैं, फिर ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?। ॥२८॥
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही॥२२॥
जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्तहोता है। ॥२२॥
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥२३॥ अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च। नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥२४॥
इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती। क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और नि:संदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है।
इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती। क्योंकि यह आत्मा अच्छेद्य है, यह आत्मा अदाह्य, अक्लेद्य और नि:संदेह अशोष्य है तथा यह आत्मा नित्य, सर्वव्यापी, अचल, स्थिर रहने वाला और सनातन है।
गृह प्रवेश के लिए श्लोक
अरहम्परमानन्दभाजनं पुण्यदर्शनम्।
मेघनागौतमागारं भंसाली भवनं नवम्।।
अरहम्परमानन्दभाजनं पुण्यदर्शनम्।
मेघनागौतमागारं भंसाली भवनं नवम्।।
मेघना और गौतम (मेघना और गौतम के स्थान पर आप जिसके भी भवन /मकान/फ्लैट का शुभारंभ है उनका नाम रख सकते हैं) का नवनिर्मित आवास अरहम के परम आनन्द का भण्डार है, जो पुण्य या पवित्र दिखाई देता है ( या जिसको देखने से पवित्रता का अनुभव होता है)।
दीपावली पर शुभकामनाएँ देने के लिए
सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा।
अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम्॥
सत्याधारस्तपस्तैलं दयावर्ति: क्षमाशिखा।
अंधकारे प्रवेष्टव्ये दीपो यत्नेन वार्यताम्॥
घना अंधकार फैल रहा हो, ऑंधी सिर पर बह रही हो तो हम जो दिया जलाएं, उसकी दीवट सत्य की हो, उसमें तेल तप का हो, उसकी बत्ती दया की हो और लौ क्षमा की हो। आज समाज में फैले अंधकार को नष्ट करने के लिए ऐसा ही दीप प्रज्जवलित करने की आवश्यकता है।
दान के लिए
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥3-21॥
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥3-21॥
क्योंकि जो एक श्रेष्ठ पुरुष करता है, दूसरे लोग भी वही करते हैं… वह जो करता है, उसी को प्रमाण मानकर अन्य लोग भी पीछे वही करते हैं…
अञ्जनस्य क्षयं दृष्ट्वा वल्मीकस्य च संचयम् अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मसु ।
नीतिअञ्जन के क्रमशाः क्षय को तथा वल्मीक के संचय को देखकर पुरुष को अपने दिन को दान, अध्ययन एवं शुभकर्मों से सफल बनाना चाहिए ।
नीतिअञ्जन के क्रमशाः क्षय को तथा वल्मीक के संचय को देखकर पुरुष को अपने दिन को दान, अध्ययन एवं शुभकर्मों से सफल बनाना चाहिए ।
अन्नदानेन सदृशं दानं न भविष्यति । तस्मादन्नं विशेषेण दातुमिच्छन्ति मानवः ॥
अन्नदान के सदृश कोई दान नहीं है इसलिए विशेषतया लोग अन्नदान करने की इच्छा करते हैं
अनुशासनपर्व-६३/६।
अन्नदान के सदृश कोई दान नहीं है इसलिए विशेषतया लोग अन्नदान करने की इच्छा करते हैं
अनुशासनपर्व-६३/६।
अयाचिता निदेशानि सर्वदानानि भारत । अन्नं विद्या तथा कन्या अनर्थीभ्यो न दीयते ॥
अन्न , विद्या और कन्या के अतिरिक्त सभी दान बिना माँगे देना चाहिए।
अन्न , विद्या और कन्या के अतिरिक्त सभी दान बिना माँगे देना चाहिए।
विद्या का महत्व
विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनं
विद्या भोगकरी यश:सुखकरी विद्या गुरूणां गुरु:।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं
विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्या विहीन: पशु:।।
विद्या भोगकरी यश:सुखकरी विद्या गुरूणां गुरु:।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परं दैवतं
विद्या राजसु पूजिता न तु धनं विद्या विहीन: पशु:।।
सरलार्थ- विद्या ही मनुष्य का सर्वोत्तम रूप तथा गुप्त धन है। विद्या ही भोग्य पदार्थों को देती है; यश और सुख को देने वाली तथा गुरुओं की भी गुरु है। विद्या ही विदेश में बन्धुजनों की भाँति सुख-दु:ख में सहायक होती है और यही भाग्य है। राजाओं के द्वारा विद्या की ही पूजा होती है, धन की नहीं। अत: विद्या से हीन पुरुष पशु के समान है। तात्पर्य यह है कि विद्या अवश्य प्राप्त करनी चाहिए।
गुरू का महत्व
‘यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरु’ अर्थात जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी होनी चाहिए। बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है।
गुरवो बहवः सन्ति शिष्यवित्तापहारकाः
दुर्लभः स गुरुर्लोके शिष्यचित्तापहारकः
– समयोचितपद्यमालिका
दुर्लभः स गुरुर्लोके शिष्यचित्तापहारकः
– समयोचितपद्यमालिका
शिष्य के धन को अपहरण करनेवाले गुरु तो बहुत हैं लेकिन शिष्य के हृदय का संताप हरनेवाला एक गुरु भी दुर्लभ है ऐसा मैं मानता हूँ
श्री स्कान्दोत्तरखण्ड में उमामहेश्वर-संवाद के माध्यम से श्री गुरुगीता में गुरू की महिमा को विस्तार से बताया गया है।
गुरु गीता एक हिन्दू ग्रंथ है। इसके रचयिता वेद व्यास हैं। वास्तव में यह स्कन्द पुराण का एक भाग है। इसमें कुल ३५२ श्लोक हैं। गुरु गीता में भगवान शिव और पार्वती का संवाद है जिसमें पार्वती भगवान शिव से गुरु और उसकी महत्ता की व्याख्या करने का अनुरोध करती हैं। इसमें भगवान शंकर गुरु क्या है, उसका महत्व, गुरु की पूजा करने की विधि, गुरु गीता को पढने के लाभ आदि का वर्णन करते हैं। वह सद्गुरु कौन हो सकता है उसकी कैसी महिमा है। इसका वर्णन इस गुरुगीता में पूर्णता से हुआ है। शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि को भी पूर्ण रूपेण दर्शाया गया है। ऐसे ही गुरु की शरण में जाने से शिष्य को पूर्णत्व प्राप्त होता है तथा वह स्वयं ब्रह्मरूप हो जाता है। उसके सभी धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य आदि समाप्त हो जाते हैं तथा केवल एकमात्र चैतन्य ही शेष रह जाता है वह गुणातीत व रूपातीत हो जाता है जो उसकी अन्तिम गति है। यही उसका गन्तव्य है जहाँ वह पहुँच जाता है। यही उसका स्वरूप है जिसे वह प्राप्त कर लेता है।
भवारण्यप्रविष्टस्य दिड्मोहभ्रान्तचेतसः |
येन सन्दर्शितः पन्थाः तस्मै श्रीगुरवे नमः ||
येन सन्दर्शितः पन्थाः तस्मै श्रीगुरवे नमः ||
संसार रूपी अरण्य में प्रवेश करने के बाद दिग्मूढ़ की स्थिति में (जब कोई मार्ग नहीं दिखाई देता है), चित्त भ्रमित हो जाता है , उस समय जिसने मार्ग दिखाया उन श्री गुरुदेव को नमस्कार हो | ( गुरू गीता 41)
विद्या धनं बलं चैव तेषां भाग्यं निरर्थकम् |
येषां गुरुकृपा नास्ति अधो गच्छन्ति पार्वति ||
येषां गुरुकृपा नास्ति अधो गच्छन्ति पार्वति ||
जिसके ऊपर श्री गुरुदेव की कृपा नहीं है उसकी विद्या, धन, बल और भाग्य निरर्थक है| हे पार्वती ! उसका अधःपतन होता है | (गुरू गीता 149)
धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोदभवः|
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता ||
धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता ||
जिसके अंदर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसका पिता धन्य है, उसका वंश धन्य है, उसके वंश में जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है | ( गुरू गीता 150)
गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो गुरौ निष्ठा परं तपः |
गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते ||
गुरोः परतरं नास्ति त्रिवारं कथयामि ते ||
गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम तप है | गुरु से अधिक और कुछ नहीं है यह मैं तीन बार कहता हूँ | (गुरू गीता 152)
सर्वसन्देहसन्दोहनिर्मूलनविचक्षणः |
जन्ममृत्युभयघ्नो यः स गुरुः परमो मतः ||
जन्ममृत्युभयघ्नो यः स गुरुः परमो मतः ||
सर्व प्रकार के सन्देहों का जड़ से नाश करने में जो चतुर हैं, जन्म, मृत्यु तथा भय का जो विनाश करते हैं वे परम गुरु कहलाते हैं, सदगुरु कहलाते हैं | (170)
भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः |
क्षीयन्ते सर्वकर्माणि गुरोः करुणया शिवे ||
क्षीयन्ते सर्वकर्माणि गुरोः करुणया शिवे ||
हे शिवे ! गुरुदेव की कृपा से हृदय की ग्रन्थि छिन्न हो जाती है, सब संशय कट जाते हैं और सर्व कर्म नष्ट हो जाते हैं | ( गुरू गीता 191)
सप्तकोटिमहामंत्राश्चित्तविभ्रंशकारकाः |
एक एव महामंत्रो गुरुरित्यक्षरद्वयम् ||
एक एव महामंत्रो गुरुरित्यक्षरद्वयम् ||
सात करोड़ महामंत्र विद्यमान हैं | वे सब चित्त को भ्रमित करनेवाले हैं | गुरु नाम का दो अक्षरवाला मंत्र एक ही महामंत्र है | (203)
गुरुरेको जगत्सर्वं ब्रह्मविष्णुशिवात्मकम् |
गुरोः परतरं नास्ति तस्मात्संपूजयेद् गुरुम् ||
गुरोः परतरं नास्ति तस्मात्संपूजयेद् गुरुम् ||
ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित समग्र जगत गुरुदेव में समाविष्ट है | गुरुदेव से अधिक और कुछ भी नहीं है, इसलिए गुरुदेव की पूजा करनी चाहिए | (209)
ज्ञानं विना मुक्तिपदं लभ्यते गुरुभक्तितः |
गुरोः समानतो नान्यत् साधनं गुरुमार्गिणाम् ||
गुरोः समानतो नान्यत् साधनं गुरुमार्गिणाम् ||
गुरुदेव के प्रति (अनन्य) भक्ति से ज्ञान के बिना भी मोक्षपद मिलता है | गुरु के मार्ग पर चलनेवालों के लिए गुरुदेव के समान अन्य कोई साधन नहीं है | (210)
मंत्रराजमिदं देवि गुरुरित्यक्षरद्वयम् |
स्मृतिवेदपुराणानां सारमेव न संशयः ||
स्मृतिवेदपुराणानां सारमेव न संशयः ||
हे देवी ! गुरु यह दो अक्षरवाला मंत्र सब मंत्रों में राजा है, श्रेष्ठ है | स्मृतियाँ, वेद और पुराणों का वह सार ही है, इसमें संशय नहीं है |
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