सोमवार, 5 अप्रैल 2021

शुभ मुहूर्त का महत्व

 श्री जनार्दन ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र

शुभ मुहूर्त का महत्व


ज्योतिष के अनुसार किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए उसे सही दिन और सही समय का चुनाव करने के बाद पूरा किया जाना चाहिए। वैदिक काल से ही किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है। शुभ मुहूर्त को शुभ घड़ी या शुभ समय भी कहते हैं। शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होता है।
हालाँकि आज के इस मॉडर्न समय में कुछ लोग शुभ मुहूर्त को ज़्यादा महत्व नहीं देते और बिना ग्रह-नक्षत्रों की चाल का अध्ययन किये ही किसी भी कार्य का शुभारंभ कर देते हैं जिसकी वजह से कड़ी मेहनत, अच्छी प्लानिंग और सही नीयत होने के बावजूद भी वो कार्य सफल नहीं हो पाता है। इसका मुख्य कारण ग्रहों का उस समय अनुकूल न होना है इसीलिए पुराने समय से लेकर आज तक किसी भी महत्वपूर्ण काम को करने के शुभ मुहूर्त निकलवाया जाता है।
आईये जानते है कि कैसे कोई भी एक समय शुभ मुहूर्त बनता है-

शुभ मुहूर्त कैसे बनता है?


ज्योतिष के अनुसार किसी भी कार्य के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए कुछ खास बातों को ध्यान में रखा जाता है, जैसे- “तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण, नव ग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिक मास, शुक्र और गुरु अस्त, शुभ योग, अशुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, और राहु काल, आदि” इन्हीं के कुल योग से मिलाकर शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। शुभ योगों की गणना कर उनका सही समय पर जीवन में इस्तेमाल करना ही शुभ मुहूर्त पर किया गया काम कहलाता है। वहीं दूसरी तरफ, अशुभ योगों के दौरान बनने वाले मुहूर्त में किया गया कार्य कभी भी पूरी तरह से सफल नहीं होता।
हिन्दू धर्म में मुहूर्त एक समय मापन इकाई माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार देखें तो दिन और रात का समय मिलाकर एक दिन में 24 घंटा होता है और इन 24 घंटों में कुल 30 मुहूर्त निकलते हैं, जिनमे से हर एक मुहूर्त लगभग 48 मिनट का होता है। साधारण शब्दों में कहें तो एक मुहूर्त बराबर होता है दो घड़ी के या करीब-करीब 48 मिनट के।

मुहूर्त के प्रकार और उसके गुण


शुभ मुहूर्त  को जानने से पहले ये समझ लें कि जैसा हमने आपको ऊपर बताया कि हिन्दू पंचांग के अनुसार 24 घंटे यानि दिन और रात मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं। पहला मुहूर्त “रुद्र”, जो कि एक अशुभ मुहूर्त माना गया है वो प्रात: 6 बजे शुरू होता है। उसके बाद दूसरा मुहूर्त आहि है, जो रूद्र मुहूर्त के ठीक 48 मिनट बाद शुरू होता है। यह भी एक अशुभ मुहूर्त ही है। इसके बाद के सभी मुहूर्त और उसके गुण जिनकी जानकारी नीचे तालिका में दी जा रही है, इन सभी का समय भी 48-48 मिनट का ही होता है।

♧मुहूर्त के नाम- गुण

रूद्र-अशुभ, अहि-अशुभ, मित्र-शुभ, पितृ-अशुभ, वसु-शुभ, वाराह-शुभ, विश्वेदेवा-शुभ, विधि-शुभ (सोमवार और शुक्रवार छोड़कर),सतमुखी-शुभ, पुरुहूत-अशुभ, वाहिनी-अशुभ, नक्तनकरा-अशुभ, वरुण-शुभ, अर्यमा-शुभ (रविवार छोड़कर), भग-अशुभ, गिरीश-अशुभ, अजपाद-अशुभ, अहिर-बुध्न्य-शुभ, पुष्य-शुभ, अश्विनी-शुभ, यम-अशुभ, अग्नि-शुभ, विधातृ-शुभ, कण्ड-शुभ, अदिति-शुभ, जीव/अमृतअति- शुभ, विष्णु-शुभ, द्युमद्गद्युति-शुभ, ब्रह्मअति- शुभ, समुद्रम-शुभ ।


♧ तिथि

वैदिक पंचांग की एक तिथि एक सूर्योदय से शुरु होकर दूसरे सूर्योदय तक व्याप्त रहती है। कभी-कभी एक ही दिन में दो तिथियाँ भी आ जाती हैं। इनमें से जब तिथि सूर्योदय नहीं देख पाती उसे क्षय तिथि कहते हैं, जबकि जो तिथि दो सूर्योदय तक व्याप्त रहती है, उसे वृद्धि तिथि कहती हैं। पंचांग के अनुसार एक माह में कुल 30 तिथियाँ होती हैं, जिनमें से कृष्ण और शुक्ल पक्ष की 15-15 तिथियाँ होती हैं। वर्ष के सभी शुभ मुहूर्त की गणना इन सभी तिथियों की स्पष्ट जानकारी के अनुसार ही की गई है।
♤ चलिए जानते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की सभी तिथियों के नाम।

♧कृष्ण पक्ष की तिथियाँ

प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या
♧शुक्ल पक्ष की तिथियाँ

प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा

♧वार/ दिन

पंचांग के अनुसार एक सप्ताह में कुल सात वार यानि सात दिन होते हैं। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार। इनमें से हर एक वार की अपनी एक विशेष और अलग प्रकृति होती है और किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के समय वार/दिन का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। सप्ताह के कुछ दिन ऐसे होते हैं, जिस दौरान कोई विशेष धार्मिक कार्य करना वर्जित होता है, जैसे कि मंगलवार का दिन। वहीं दूसरी ओर इन सात वारों में रविवार और गुरुवार का दिन कई मायनों में श्रेष्ठ माना गया है। इन दोनों में भी गुरुवार का दिन सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि गुरु की दिशा ईशान है और ईशान कोण में ही सभी देवताओं का वास होता है।

  शुभ मुहूर्त की गणना में नक्षत्र का भी खास ध्यान रखा गया है।♤नक्षत्र कुल संख्या में 27 होते हैं। चलिए जानते है सभी नक्षत्रों और उनके स्वामी के नाम-

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।

नक्षत्रों के स्वामी ग्रह

केतु -अश्विनी, मघा, मूल।

शुक्र -भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा।

सूर्य -कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा।

चन्द्र - रोहिणी, हस्त, श्रवण।

मंगल -मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा।

राहु -आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा।

बृहस्पति -पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद।

शनि -पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद।
बुध -आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती।

♧करण

एक तिथि में दो करण होते हैं, या यूँ कह लें कि तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। एक करण तिथि के पूर्वार्ध में होता है और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे में पंचांग के अनुसार, कुल 11 करण होते हैं, जिनमें से जहाँ चार करण की प्रकृति स्थिर होती है, तो वहीं शेष करण चर प्रकृति के होते हैं। किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के दौरान करणों की स्थिति का आकलन करना भी बेहद ज़रूरी होता है।
♤चलिए जानते हैं सभी 11 करणों के बारे में:
♧करण के नामप्रकृति
किस्तुघ्न-स्थिर, बव-चर, बालव-चर, कौलव-चर, गर-चर, तैतिल-चर, वणिज-चर, विष्टि/भद्रा-चर, शकुनि-स्थिर, नाग-स्थिर, चतुष्पाद-स्थिर ।
◇किसी भी नए एवं मांगलिक कार्य का आरम्भ के लिए ऊपर बताये सभी करणों में से विष्टि करण अथवा भद्रा करण को सबसे ज़्यादा अशुभ माना जाता है। ऐसे में इस दौरान किसी भी काम को इस करण में करना वर्जित होता है।

♧योग

पञ्चांग में कुल 27 योग के विषय में चर्चा की गयी है, जो कि सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर बताए गए हैं। इन योगों का मुहूर्त के दौरान अपना-अपना अलग महत्व होता है। सभी 27 योगों में से 9 योगों को बेहद अशुभ, तो वहीं इन 9 के अलावा बाकि सभी योगों को शुभ भी माना जाता है। अशुभ योगों में कोई भी शुभ काम करना वर्जित होता है।
♤चलिए डालते हैं एक नज़र सभी 27 योगों और उनके स्वभाव पर:-

♧योग के नामगुण

विष्कुम्भ-अशुभ, प्रीति-शुभ, आयुष्मान-शुभ, सौभाग्य-शुभ, शोभन-शुभ, अतिगण्ड-अशुभ, सुकर्मा-शुभ, धृति-शुभ, शूल-अशुभ, गण्ड-अशुभ, वृद्धि-शुभ, ध्रुव-शुभ, व्याघात-अशुभ, हर्षण-शुभ, वज्र-अशुभ, सिद्धि-शुभ, व्यतिपात-अशुभ, वरीयान-शुभ, परिघ-अशुभ, शिव-शुभ, सिद्ध-शुभ, साध्य-शुभ, शुभ-शुभ, शुक्ल-शुभ, ब्रह्म-शुभ, ऐन्द्र-शुभ, वैधृति-अशुभ ।

              ।।धन्यवाद ।।

सम्पादक:- आचार्य प्रभात झा 

मो:- 9155657892

https://www.facebook.com/princejyotishkendra/


रविवार, 4 अप्रैल 2021

ज्ञान की बातें ।

 #हिंदुओं #जानो #अपने #धर्म और #संस्कृति के #बारे #मे


*पाण्डव पाँच भाई थे जिनके नाम हैं -*

*1. युधिष्ठिर    2. भीम    3. अर्जुन*

*4. नकुल।      5. सहदेव*


*( इन पांचों के अलावा , महाबली कर्ण भी कुंती के ही पुत्र थे , परन्तु उनकी गिनती पांडवों में नहीं की जाती है )*


*यहाँ ध्यान रखें कि… पाण्डु के उपरोक्त पाँचों पुत्रों में से युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन*

*की माता कुन्ती थीं ……तथा , नकुल और सहदेव की माता माद्री थी ।*


*वहीँ …. धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र…..*

*कौरव कहलाए जिनके नाम हैं -*

*1. दुर्योधन      2. दुःशासन   3. दुःसह*

*4. दुःशल        5. जलसंघ    6. सम*

*7. सह            8. विंद         9. अनुविंद*

*10. दुर्धर्ष       11. सुबाहु।   12. दुषप्रधर्षण*

*13. दुर्मर्षण।   14. दुर्मुख     15. दुष्कर्ण*

*16. विकर्ण     17. शल       18. सत्वान*

*19. सुलोचन   20. चित्र       21. उपचित्र*

*22. चित्राक्ष     23. चारुचित्र 24. शरासन*

*25. दुर्मद।       26. दुर्विगाह  27. विवित्सु*

*28. विकटानन्द 29. ऊर्णनाभ 30. सुनाभ*

*31. नन्द।        32. उपनन्द   33. चित्रबाण*

*34. चित्रवर्मा    35. सुवर्मा    36. दुर्विमोचन*

*37. अयोबाहु   38. महाबाहु  39. चित्रांग 40. चित्रकुण्डल41. भीमवेग  42. भीमबल*

*43. बालाकि    44. बलवर्धन 45. उग्रायुध*

*46. सुषेण       47. कुण्डधर  48. महोदर*

*49. चित्रायुध   50. निषंगी     51. पाशी*

*52. वृन्दारक   53. दृढ़वर्मा   54. दृढ़क्षत्र*

*55. सोमकीर्ति  56. अनूदर    57. दढ़संघ 58. जरासंघ   59. सत्यसंघ 60. सद्सुवाक*

*61. उग्रश्रवा   62. उग्रसेन     63. सेनानी*

*64. दुष्पराजय        65. अपराजित* 

*66. कुण्डशायी        67. विशालाक्ष*

*68. दुराधर   69. दृढ़हस्त    70. सुहस्त*

*71. वातवेग  72. सुवर्च    73. आदित्यकेतु*

*74. बह्वाशी   75. नागदत्त 76. उग्रशायी*

*77. कवचि    78. क्रथन। 79. कुण्डी* 

*80. भीमविक्र 81. धनुर्धर  82. वीरबाहु*

*83. अलोलुप  84. अभय  85. दृढ़कर्मा*

*86. दृढ़रथाश्रय    87. अनाधृष्य*

*88. कुण्डभेदी।     89. विरवि*

*90. चित्रकुण्डल    91. प्रधम*

*92. अमाप्रमाथि    93. दीर्घरोमा*

*94. सुवीर्यवान     95. दीर्घबाहु*

*96. सुजात।         97. कनकध्वज*

*98. कुण्डाशी        99. विरज*

*100. युयुत्सु*


*( इन 100 भाइयों के अलावा कौरवों की एक बहनभी थी… जिसका नाम""दुशाला""था,*

*जिसका विवाह"जयद्रथ"सेहुआ था )*


*"श्री मद्-भगवत गीता"के बारे में-*


*ॐ . किसको किसने सुनाई?*

*उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।* 


*ॐ . कब सुनाई?*

*उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।*


*ॐ. भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?*

*उ.- रविवार के दिन।*


*ॐ. कोनसी तिथि को?*

*उ.- एकादशी* 


*ॐ. कहा सुनाई?*

*उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।*


*ॐ. कितनी देर में सुनाई?*

*उ.- लगभग 45 मिनट में*


*ॐ. क्यू सुनाई?*

*उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।*


*ॐ. कितने अध्याय है?*

*उ.- कुल 18 अध्याय*


*ॐ. कितने श्लोक है?*

*उ.- 700 श्लोक*


*ॐ. गीता में क्या-क्या बताया गया है?*

*उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।* 


*ॐ. गीता को अर्जुन के अलावा* 

*और किन किन लोगो ने सुना?*

*उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने*


*ॐ. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?*

*उ.- भगवान सूर्यदेव को*


*ॐ. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?*

*उ.- उपनिषदों में*


*ॐ. गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?*

*उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।*


*ॐ. गीता का दूसरा नाम क्या है?*

*उ.- गीतोपनिषद*


*ॐ. गीता का सार क्या है?*

*उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना*


*ॐ. गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?*

*उ.- श्रीकृष्ण जी ने- 574*

*अर्जुन ने- 85* 

*धृतराष्ट्र ने- 1*

*संजय ने- 40.*


*अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद*


*अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है।*


*33 करोड नहीँ  33 कोटी देवी देवता हैँ हिँदू*

*धर्म मेँ।*


*कोटि = प्रकार।* 

*देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते है,*


*कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता।*


*हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...*


*कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ हिँदू धर्म मे :-*


*12 प्रकार हैँ*

*आदित्य , धाता, मित, आर्यमा,*

*शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,*

*सविता, तवास्था, और विष्णु...!*


*8 प्रकार हे :-*

*वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष।*


*11 प्रकार है :-* 

*रुद्र: ,हर,बहुरुप, त्रयँबक,*

*अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,*

*रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।*


*एवँ*

*दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।*


*कुल :- 12+8+11+2=33 कोटी* 


*अगर कभी भगवान् के आगे हाथ जोड़ा है*

*तो इस जानकारी को अधिक से अधिक*

*लोगो तक पहुचाएं। ।*


*🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏*


*१ हिन्दु हाेने के नाते जानना ज़रूरी है*


*THIS IS VERY GOOD INFORMATION FOR ALL OF US ... जय श्रीकृष्ण ...*


*अब आपकी बारी है कि इस जानकारी*

 *को आगे बढ़ाएँ ......*


*अपनी भारत की संस्कृति* 

*को पहचाने.*

*ज्यादा से ज्यादा*

*लोगो तक पहुचाये.* 

*खासकर अपने बच्चो को बताए* 

*क्योकि ये बात उन्हें कोई नहीं* *बताएगा...*


*📜😇  दो पक्ष-*


*कृष्ण पक्ष ,* 

*शुक्ल पक्ष !*


*📜😇  तीन ऋण -*


*देव ऋण ,* 

*पितृ ऋण ,* 

*ऋषि ऋण !*


*📜😇   चार युग -*


*सतयुग ,* 

*त्रेतायुग ,*

*द्वापरयुग ,* 

*कलियुग !*


*📜😇  चार धाम -*


*द्वारिका ,* 

*बद्रीनाथ ,*

*जगन्नाथ पुरी ,* 

*रामेश्वरम धाम !*


*📜😇   चारपीठ -*


*शारदा पीठ ( द्वारिका )*

*ज्योतिष पीठ ( जोशीमठ बद्रिधाम )* 

*गोवर्धन पीठ ( जगन्नाथपुरी ) ,* 

*शृंगेरीपीठ !*


*📜😇 चार वेद-*


*ऋग्वेद ,* 

*अथर्वेद ,* 

*यजुर्वेद ,* 

*सामवेद !*


*📜😇  चार आश्रम -*


*ब्रह्मचर्य ,* 

*गृहस्थ ,* 

*वानप्रस्थ ,* 

*संन्यास !*


*📜😇 चार अंतःकरण -*


*मन ,* 

*बुद्धि ,* 

*चित्त ,* 

*अहंकार !*


*📜😇  पञ्च गव्य -*


*गाय का घी ,* 

*दूध ,* 

*दही ,*

*गोमूत्र ,* 

*गोबर !*


*📜😇  पञ्च देव -*


*गणेश ,* 

*विष्णु ,* 

*शिव ,* 

*देवी ,*

*सूर्य !*


*📜😇 पंच तत्त्व -*


*पृथ्वी ,*

*जल ,* 

*अग्नि ,* 

*वायु ,* 

*आकाश !*


*📜😇  छह दर्शन -*


*वैशेषिक ,* 

*न्याय ,* 

*सांख्य ,*

*योग ,* 

*पूर्व मिसांसा ,* 

*दक्षिण मिसांसा !*


*📜😇  सप्त ऋषि -*


*विश्वामित्र ,*

*जमदाग्नि ,*

*भरद्वाज ,* 

*गौतम ,* 

*अत्री ,* 

*वशिष्ठ और कश्यप!* 


*📜😇  सप्त पुरी -*


*अयोध्या पुरी ,*

*मथुरा पुरी ,* 

*माया पुरी ( हरिद्वार ) ,* 

*काशी ,*

*कांची* 

*( शिन कांची - विष्णु कांची ) ,* 

*अवंतिका और* 

*द्वारिका पुरी !*


*📜😊  आठ योग -* 


*यम ,* 

*नियम ,* 

*आसन ,*

*प्राणायाम ,* 

*प्रत्याहार ,* 

*धारणा ,* 

*ध्यान एवं* 

*समाधि !*


*📜😇 आठ लक्ष्मी -*


*आग्घ ,* 

*विद्या ,* 

*सौभाग्य ,*

*अमृत ,* 

*काम ,* 

*सत्य ,* 

*भोग ,एवं* 

*योग लक्ष्मी !*


*📜😇 नव दुर्गा --*


*शैल पुत्री ,* 

*ब्रह्मचारिणी ,*

*चंद्रघंटा ,* 

*कुष्मांडा ,* 

*स्कंदमाता ,* 

*कात्यायिनी ,*

*कालरात्रि ,* 

*महागौरी एवं* 

*सिद्धिदात्री !*


*📜😇   दस दिशाएं -*


*पूर्व ,* 

*पश्चिम ,* 

*उत्तर ,* 

*दक्षिण ,*

*ईशान ,* 

*नैऋत्य ,* 

*वायव्य ,* 

*अग्नि* 

*आकाश एवं* 

*पाताल !*


*📜😇  मुख्य ११ अवतार -*


 *मत्स्य ,* 

*कच्छप ,* 

*वराह ,*

*नरसिंह ,* 

*वामन ,* 

*परशुराम ,*

*श्री राम ,* 

*कृष्ण ,* 

*बलराम ,* 

*बुद्ध ,* 

*एवं कल्कि !*


*📜😇 बारह मास -* 


*चैत्र ,* 

*वैशाख ,* 

*ज्येष्ठ ,*

*अषाढ ,* 

*श्रावण ,* 

*भाद्रपद ,* 

*अश्विन ,* 

*कार्तिक ,*

*मार्गशीर्ष ,* 

*पौष ,* 

*माघ ,* 

*फागुन !*


*📜😇  बारह राशी -* 


*मेष ,* 

*वृषभ ,* 

*मिथुन ,*

*कर्क ,* 

*सिंह ,* 

*कन्या ,* 

*तुला ,* 

*वृश्चिक ,* 

*धनु ,* 

*मकर ,* 

*कुंभ ,*

*मीन!*


*📜😇 बारह ज्योतिर्लिंग -* 


*सोमनाथ ,*

*मल्लिकार्जुन ,*

*महाकाल ,* 

*ओमकारेश्वर ,* 

*बैजनाथ ,* 

*रामेश्वरम ,*

*विश्वनाथ ,* 

*त्र्यंबकेश्वर ,* 

*केदारनाथ ,* 

*घुष्नेश्वर ,*

*भीमाशंकर ,*

*नागेश्वर !*


*📜😇 पंद्रह तिथियाँ -*


*प्रतिपदा ,*

*द्वितीय ,*

*तृतीय ,*

*चतुर्थी ,* 

*पंचमी ,* 

*षष्ठी ,* 

*सप्तमी ,* 

*अष्टमी ,* 

*नवमी ,*

*दशमी ,* 

*एकादशी ,* 

*द्वादशी ,* 

*त्रयोदशी ,* 

*चतुर्दशी ,* 

*पूर्णिमा ,* 

*अमावास्या !*


*📜😇 स्मृतियां -* 


*मनु ,* 

*विष्णु ,* 

*अत्री ,* 

*हारीत ,*

*याज्ञवल्क्य ,*

*उशना ,* 

*अंगीरा ,* 

*यम ,* 

*आपस्तम्ब ,* 

*सर्वत ,*

*कात्यायन ,* 

*ब्रहस्पति ,* 

*पराशर ,* 

*व्यास ,* 

*शांख्य ,*

*लिखित ,* 

*दक्ष ,* 

*शातातप ,* 

*वशिष्ठ !*


हिन्दू धर्म की 10 महत्वपूर्ण बातें ........


१...10 ध्वनियां :  1.घंटी, 2.शंख, 3.बांसुरी, 4.वीणा, 5. मंजीरा, 6.करतल, 7.बीन (पुंगी), 8.ढोल, 9.नगाड़ा और 10.मृदंग


२,,,,10 कर्तव्य:- 1. संध्यावंदन, 2. व्रत, 3. तीर्थ, 4. उत्सव, 5. दान, 6. सेवा 7. संस्कार, 8. यज्ञ, 9. वेदपाठ, 10. धर्म प्रचार। आओ जानते हैं इन सभी को विस्तार से।


३,,,,10 दिशाएं : दिशाएं 10 होती हैं जिनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- उर्ध्व, ईशान, पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर और अधो। एक मध्य दिशा भी होती है। इस तरह कुल मिलाकर 11 दिशाएं हुईं।


४....10 दिग्पाल : 10 दिशाओं के 10 दिग्पाल अर्थात द्वारपाल होते हैं या देवता होते हैं। उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत।


५.….10 देवीय आत्मा : 1.कामधेनु गाय, 2.गरुढ़, 3.संपाति-जटायु, 4.उच्चै:श्रवा अश्व, 5.ऐरावत हाथी, 6.शेषनाग-वासुकि, 7.रीझ मानव, 8.वानर मानव, 9.येति, 10.मकर।


६.....10 देवीय वस्तुएं : 1.कल्पवृक्ष, 2.अक्षयपात्र, 3.कर्ण के कवच कुंडल, 4.दिव्य धनुष और तरकश, 5.पारस मणि, 6.अश्वत्थामा की मणि, 7.स्यंमतक मणि, 8.पांचजन्य शंख, 9.कौस्तुभ मणि और संजीवनी बूटी।


७....10 पवित्र पेय : 1.चरणामृत, 2.पंचामृत, 3.पंचगव्य, 4.सोमरस, 5.अमृत, 6.तुलसी रस, 7.खीर, 9.आंवला रस


८....10 महाविद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्‍वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला।


९....10 उत्सव : नवसंवत्सर, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, पोंगल, होली, दीपावली, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्‍टमी, महाशिवरात्री और नवरात्रि।


१०...10 बाल पुस्तकें : 1.पंचतंत्र, 2.हितोपदेश, 3.जातक कथाएं, 4.उपनिषद कथाएं, 5.वेताल पच्चिसी, 6.कथासरित्सागर, 7.सिंहासन बत्तीसी, 8.तेनालीराम, 9.शुकसप्तति, 10.बाल कहानी संग्रह।


११....10 पूजा : गंगा दशहरा, आंवला नवमी पूजा, वट सावित्री, तुलसी विवाह पूजा, शीतलाष्टमी, गोवर्धन पूजा, हरतालिका तिज, दुर्गा पूजा, भैरव पूजा और छठ पूजा।


१२...10 धार्मिक स्थल : 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्तिपीठ, 4 धाम, 7 पुरी, 7 नगरी, 4 मठ, आश्रम, 10 समाधि स्थल, 5 सरोवर, 10 पर्वत और 10 गुफाएं।


१३..10 पूजा के फूल : आंकड़ा, गेंदा, पारिजात, चंपा, कमल, गुलाब, चमेली, गुड़हल, कनेर, और रजनीगंधा।


१४...10 धार्मिक सुगंध : गुग्गुल, चंदन, गुलाब, केसर, कर्पूर, अष्टगंथ, गुढ़-घी, समिधा, मेहंदी, चमेली।


१५...10 यम-नियम :1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। 6.शौच 7.संतोष, 8.तप, 9.स्वाध्याय और 10.ईश्वर-प्रणिधान।


१६...10 सिद्धांत : 

1.एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति (एक ही ईश्‍वर है दूसरा नहीं), 2.आत्मा अमर है, 

3.पुनर्जन्म होता है, 

4.मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है, 5.कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है, 6.संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है, 

7.ब्रह्मांड अनित्य और परिवर्तनशील है, 

8.संध्यावंदन-ध्यान ही सत्य है, 9.वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है, 

10.दान ही पुण्य है।


*॥ हरे कृष्णा हरे कृष्ण* 

*कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥*

*॥ हरे राम हरे राम*

*॥ राम राम हरे हरे ॥*


*इस पोस्ट को अधिकाधिक शेयर करें जिससे सबको हमारी संस्कृति का ज्ञान हो।*


*🙏🏻॥ जय श्री कृष्णा ॥🙏🏻*

🚩🚩 *जय हनुमान* 🚩🚩

  🚩🚩  **🙏🏻🙏🏻🙏🏻

चौठचन्द्र {चौरचन} पूजा विधि मन्त्र और कथा सहित

चौठचन्द्र (चौरचन) पूजा विधि मन्त्र और कथा सहित   जय चौठचन्द्र भगवान🙏🏼🙏🏼 ============= भादव शुक्ल चतुर्थी पहिल साँझ व्रती स्नान कऽ ...