श्री जनार्दन ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
शुभ मुहूर्त का महत्व
ज्योतिष के अनुसार किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए उसे सही दिन और सही समय का चुनाव करने के बाद पूरा किया जाना चाहिए। वैदिक काल से ही किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को करने से पहले शुभ मुहूर्त देखने की परंपरा है। शुभ मुहूर्त को शुभ घड़ी या शुभ समय भी कहते हैं। शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होता है।
हालाँकि आज के इस मॉडर्न समय में कुछ लोग शुभ मुहूर्त को ज़्यादा महत्व नहीं देते और बिना ग्रह-नक्षत्रों की चाल का अध्ययन किये ही किसी भी कार्य का शुभारंभ कर देते हैं जिसकी वजह से कड़ी मेहनत, अच्छी प्लानिंग और सही नीयत होने के बावजूद भी वो कार्य सफल नहीं हो पाता है। इसका मुख्य कारण ग्रहों का उस समय अनुकूल न होना है इसीलिए पुराने समय से लेकर आज तक किसी भी महत्वपूर्ण काम को करने के शुभ मुहूर्त निकलवाया जाता है।
आईये जानते है कि कैसे कोई भी एक समय शुभ मुहूर्त बनता है-
शुभ मुहूर्त कैसे बनता है?
ज्योतिष के अनुसार किसी भी कार्य के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए कुछ खास बातों को ध्यान में रखा जाता है, जैसे- “तिथि, वार, योग, नक्षत्र, करण, नव ग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिक मास, शुक्र और गुरु अस्त, शुभ योग, अशुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, और राहु काल, आदि” इन्हीं के कुल योग से मिलाकर शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। शुभ योगों की गणना कर उनका सही समय पर जीवन में इस्तेमाल करना ही शुभ मुहूर्त पर किया गया काम कहलाता है। वहीं दूसरी तरफ, अशुभ योगों के दौरान बनने वाले मुहूर्त में किया गया कार्य कभी भी पूरी तरह से सफल नहीं होता।
हिन्दू धर्म में मुहूर्त एक समय मापन इकाई माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार देखें तो दिन और रात का समय मिलाकर एक दिन में 24 घंटा होता है और इन 24 घंटों में कुल 30 मुहूर्त निकलते हैं, जिनमे से हर एक मुहूर्त लगभग 48 मिनट का होता है। साधारण शब्दों में कहें तो एक मुहूर्त बराबर होता है दो घड़ी के या करीब-करीब 48 मिनट के।
मुहूर्त के प्रकार और उसके गुण
शुभ मुहूर्त को जानने से पहले ये समझ लें कि जैसा हमने आपको ऊपर बताया कि हिन्दू पंचांग के अनुसार 24 घंटे यानि दिन और रात मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं। पहला मुहूर्त “रुद्र”, जो कि एक अशुभ मुहूर्त माना गया है वो प्रात: 6 बजे शुरू होता है। उसके बाद दूसरा मुहूर्त आहि है, जो रूद्र मुहूर्त के ठीक 48 मिनट बाद शुरू होता है। यह भी एक अशुभ मुहूर्त ही है। इसके बाद के सभी मुहूर्त और उसके गुण जिनकी जानकारी नीचे तालिका में दी जा रही है, इन सभी का समय भी 48-48 मिनट का ही होता है।
♧मुहूर्त के नाम- गुण
रूद्र-अशुभ, अहि-अशुभ, मित्र-शुभ, पितृ-अशुभ, वसु-शुभ, वाराह-शुभ, विश्वेदेवा-शुभ, विधि-शुभ (सोमवार और शुक्रवार छोड़कर),सतमुखी-शुभ, पुरुहूत-अशुभ, वाहिनी-अशुभ, नक्तनकरा-अशुभ, वरुण-शुभ, अर्यमा-शुभ (रविवार छोड़कर), भग-अशुभ, गिरीश-अशुभ, अजपाद-अशुभ, अहिर-बुध्न्य-शुभ, पुष्य-शुभ, अश्विनी-शुभ, यम-अशुभ, अग्नि-शुभ, विधातृ-शुभ, कण्ड-शुभ, अदिति-शुभ, जीव/अमृतअति- शुभ, विष्णु-शुभ, द्युमद्गद्युति-शुभ, ब्रह्मअति- शुभ, समुद्रम-शुभ ।
♧ तिथि
वैदिक पंचांग की एक तिथि एक सूर्योदय से शुरु होकर दूसरे सूर्योदय तक व्याप्त रहती है। कभी-कभी एक ही दिन में दो तिथियाँ भी आ जाती हैं। इनमें से जब तिथि सूर्योदय नहीं देख पाती उसे क्षय तिथि कहते हैं, जबकि जो तिथि दो सूर्योदय तक व्याप्त रहती है, उसे वृद्धि तिथि कहती हैं। पंचांग के अनुसार एक माह में कुल 30 तिथियाँ होती हैं, जिनमें से कृष्ण और शुक्ल पक्ष की 15-15 तिथियाँ होती हैं। वर्ष के सभी शुभ मुहूर्त की गणना इन सभी तिथियों की स्पष्ट जानकारी के अनुसार ही की गई है।♤ चलिए जानते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की सभी तिथियों के नाम।
♧कृष्ण पक्ष की तिथियाँ
प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या
♧शुक्ल पक्ष की तिथियाँ
प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा
♧वार/ दिन
पंचांग के अनुसार एक सप्ताह में कुल सात वार यानि सात दिन होते हैं। सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार, रविवार। इनमें से हर एक वार की अपनी एक विशेष और अलग प्रकृति होती है और किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के समय वार/दिन का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। सप्ताह के कुछ दिन ऐसे होते हैं, जिस दौरान कोई विशेष धार्मिक कार्य करना वर्जित होता है, जैसे कि मंगलवार का दिन। वहीं दूसरी ओर इन सात वारों में रविवार और गुरुवार का दिन कई मायनों में श्रेष्ठ माना गया है। इन दोनों में भी गुरुवार का दिन सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि गुरु की दिशा ईशान है और ईशान कोण में ही सभी देवताओं का वास होता है।
शुभ मुहूर्त की गणना में नक्षत्र का भी खास ध्यान रखा गया है।♤नक्षत्र कुल संख्या में 27 होते हैं। चलिए जानते है सभी नक्षत्रों और उनके स्वामी के नाम-
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।
♧नक्षत्रों के स्वामी ग्रह
केतु -अश्विनी, मघा, मूल।
शुक्र -भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा।
सूर्य -कृत्तिका, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा।
चन्द्र - रोहिणी, हस्त, श्रवण।
मंगल -मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा।
राहु -आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा।
बृहस्पति -पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद।
शनि -पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद।
बुध -आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती।
♧करण
एक तिथि में दो करण होते हैं, या यूँ कह लें कि तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। एक करण तिथि के पूर्वार्ध में होता है और एक तिथि के उत्तरार्ध में। ऐसे में पंचांग के अनुसार, कुल 11 करण होते हैं, जिनमें से जहाँ चार करण की प्रकृति स्थिर होती है, तो वहीं शेष करण चर प्रकृति के होते हैं। किसी भी शुभ मुहूर्त की गणना के दौरान करणों की स्थिति का आकलन करना भी बेहद ज़रूरी होता है।
♤चलिए जानते हैं सभी 11 करणों के बारे में:
♧करण के नामप्रकृति
किस्तुघ्न-स्थिर, बव-चर, बालव-चर, कौलव-चर, गर-चर, तैतिल-चर, वणिज-चर, विष्टि/भद्रा-चर, शकुनि-स्थिर, नाग-स्थिर, चतुष्पाद-स्थिर ।
◇किसी भी नए एवं मांगलिक कार्य का आरम्भ के लिए ऊपर बताये सभी करणों में से विष्टि करण अथवा भद्रा करण को सबसे ज़्यादा अशुभ माना जाता है। ऐसे में इस दौरान किसी भी काम को इस करण में करना वर्जित होता है।
♧योग
पञ्चांग में कुल 27 योग के विषय में चर्चा की गयी है, जो कि सूर्य और चंद्रमा की स्थिति के आधार पर बताए गए हैं। इन योगों का मुहूर्त के दौरान अपना-अपना अलग महत्व होता है। सभी 27 योगों में से 9 योगों को बेहद अशुभ, तो वहीं इन 9 के अलावा बाकि सभी योगों को शुभ भी माना जाता है। अशुभ योगों में कोई भी शुभ काम करना वर्जित होता है।
♤चलिए डालते हैं एक नज़र सभी 27 योगों और उनके स्वभाव पर:-
♧योग के नामगुण
विष्कुम्भ-अशुभ, प्रीति-शुभ, आयुष्मान-शुभ, सौभाग्य-शुभ, शोभन-शुभ, अतिगण्ड-अशुभ, सुकर्मा-शुभ, धृति-शुभ, शूल-अशुभ, गण्ड-अशुभ, वृद्धि-शुभ, ध्रुव-शुभ, व्याघात-अशुभ, हर्षण-शुभ, वज्र-अशुभ, सिद्धि-शुभ, व्यतिपात-अशुभ, वरीयान-शुभ, परिघ-अशुभ, शिव-शुभ, सिद्ध-शुभ, साध्य-शुभ, शुभ-शुभ, शुक्ल-शुभ, ब्रह्म-शुभ, ऐन्द्र-शुभ, वैधृति-अशुभ ।।।धन्यवाद ।।
सम्पादक:- आचार्य प्रभात झा
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